Saturday 16 April 2011

तमाशा जन्मदिन का

लोग आये
उन्होंने
मोमबत्तियां बुझाईं
केक काटा
तालियां बजाईँ
और
नारे उछाले
“हैप्पी बर्थ डे टू यू ”
फिर उन्होंने
बच्चे को देखा
उसके मम्मी -डैडी को देखा
एक अर्थभरी
मुस्कान फैंकी
और
बच्चे के हाथ में
पकड़ा दिया एक
वज़नी लिफाफा
और बढ़ते गये
खाने की टेबिल की ओर
देर रात तक
यह सिलसिला
चलता रहा
और बच्चा
टुकुर टुकुर देखता रहा
मम्मी डैडी को
लिफाफों को
और लोगों की
मुस्कान को
देखते देखते
यह तमाशा
अपने जन्मदिन का
जब थक गया बच्चा
तब, सबकी नजर बचा
एक बूढ़ी नौकरानी आई
उसने
सिर्फ उसके सिर पर
प्यार भरा हाथ फेरा
और
मुस्कराई
अब बच्चा
टुकुर टुकुर नहीं देख रहा था
खिलखिला रहा था

## डा. मनोज रस्तोगी
 मुरादाबाद (उ.प्र.)

3 comments:

  1. मनोज भाई, आपको बधाई. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है. प्रस्तुत रचना के लिए धन्यबाद.

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  2. .

    Very touching poem . Honestly speaking it genuinely has influenced me.

    I can sense your sensitive and caring nature through this creation .

    thanks.

    .

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  3. दिव्या जी ,आपके मन को कविता ने छुआ | आभारी हूँ | हम अपनी स्वार्थपूर्ति में बच्चों की संवेदनाओं को भी भूल जाते हैं |
    rastogi.jagranjunction.com

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