Saturday 29 December 2018

 मेहमान नवाजी के लिए मशहूर थे काजी शौकत हुसैन

मेहमान नवाजी का जब कभी जिक्र होता है तो काजी शौकत हुसैन खां की यादें ताजा हो जाती हैं। यह दौर था उन्नीसवीं सदी का आखिरी और 20 वीं सदी का शुरुआती। उस समय मुरादाबाद में आने वाली नामवर हस्तियों में शायद ही कोई ऐसी हस्ती हो जो काजी शौकत हुसैन खां की मेहमान न बनी हो। वह एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्हें जनता और सरकार दोनों में लोकप्रियता हासिल थी। जनता जहां उन्हें 'अजीमुल मर्तबतÓ (महान रुतबे वाला)से संबोधित करती थी वहीं अंग्रेज सरकार ने उन्हें खान बहादुर की उपाधि से विभूषित किया तथा आजीवन अवैतनिक स्पेशल मजिस्ट्रेट नियुक्त किया। काजी उनकी पारिवारिक उपाधि थी। उनके पूर्वज मुगल सम्राट शाहजहां के शासनकाल में यहां शहर काजी बन कर आए और सन 1774 तक इस पद पर नियुक्त होते रहे। इसी दौरान मुगल सम्राटों ने उन्हें जागीरें भी दीं।
 उनके पिता काजी मुहम्मद तजम्मुल हुसैन खां ने शौकत बाग का निर्माण कराया था, लेकिन उसे ख्याति सन 1865 में पैदा काजी शौकत हुसैन के समय में मिली। उनके प्रपौत्र काजी नुसरत हुसैन खां के बेटे काजी शौकत हुसैन खां बताते हैं कि शौकत बाग में विशाल कोठी और दीवान खाना था, जिसके चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी। दुर्लभ प्रजाति के अनेक पेड़ बाग में थे। पूरा वातावरण फूलों की खुशबू से महकता था। शौकत बाग के दीवानखाने में जहां मुकदमों का फैसला होता था तो वहीं मेहमानखाने में सम्मानित अतिथियों को ठहराया जाता था और उन्हें दावतें दी जाती थीं। यह सिलसिला काजी शौकत हुसैन की मृत्यु (सन 1935) तक चलता रहा। वह बताते हैं कि शौकत बाग लगभग 25 बीघे में था। सन 1974 में यह बाग उजड़ गया। दरअसल सीलिंग के कारण यहां रिहाइश शुरू हो गई और आज उसने एक मुहल्ले का रूप ले लिया।


अनेक रियासतों के नवाब बन चुके हैं मेहमान
काजी जी के मेहमान बनने वालों में भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खां, रामपुर के नवाब सर हामिद अली खां, छतारी के नवाब अहमद सईद खां, सर जेम्स मेंस्टन, सर विलियम मेलकम हेली, नवाब विकारुमुल्क, मौलाना मुहम्मद अली मौलाना शौकत अली,  हाजी अजमल खां, हजरत शेखुल हिंद, मौलाना महमूदल हसन, हैदराबाद के नवाब मोहसिनुल मुल्क, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैयद अहमद खां, पंडित मदन मोहन मालवीय आदि मुख्य थे


अनेक राजनीतिक हस्तियों के आगमन का भी है गवाह शौकत बाग

काजी शौकत हुसैन की मृत्यु के बाद भी यहां अनेक राजनीतिक हस्तियों का आगमन हुआ। उनके दूसरे प्रपौत्र काजी मुशर्रत हुसैन बताते हैं कि हेमवती नंदन बहुगुणा, बनारसी दास गुप्ता, चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव, अजित सिंह, सुनील शास्त्री, राम विलास पासवान भी यहां आ चुके हैं। यहांअनेक राजनीतिक दलों की जनसभाएं भी होती रही हैं। यही नहीं यहां तीन बैडमिंटन कोर्ट भी थे, जहां शहर के तमाम खिलाड़ी आते थे।


सन 1916 में प्रकाशित हुआ था
दीवान 'शौकते सुखनÓ
काजी शौकत हुसैन को अरबी फारसी में भी महारथ हासिल थी। वह शायर भी थे और मशहूर शायर दाग देहलवी के शागिर्द थे। इतिहासकार डॉ. आसिफ बताते हैं कि शौकत बाग में वह हर महीने मुशायरे का आयोजन करते थे और उसकी पूरी रिपोर्ट गुलदस्ता ए शौकते सुखन के नाम से छपवा कर वितरित करते थे। सन 1926 में उन्होंने देहरादून में भी मुशायरा आयोजित किया था। उनका एक दीवान 'शौकते सुखनÓ सन 1916 में प्रकाशित हुआ था। वह उनका एक चर्चित शेर भी सुनाते हैं- हुआ जो होना था खैर शौकत, बस अब ना रूठो मिलाप कर लो। कि बांहे डाले हुए गले में, तुम्हें वो कब से मना रहे हैं।

डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल रस्तोगी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन 9456687822


Monday 29 October 2012

वाड्रा हो गए मालामाल

वाड्रा हो गए मालामाल


सब गोलमाल है गोलमाल।
कैसे सुनाएं देश का हाल।।

हर किसी के मन में भइया ।
उठ रहा है एक सवाल ।।

तीन साल में रॉबर्ट वाड्रा ।
कैसे हो गए मालामाल ।।

किसमें हिम्मत, जो जांच करे।
सत्ता बन गई है उनकी ढाल।।

चुप क्यों हो, कुछ तो बोलो।
पूछ रहे हैं केजरीवाल ।।

असर नहीं होगा हम पर ।
कितनी कर लो तुम हड़ताल।।

हम तो हो गए घड़े चिकने ।
मोटी हो गई अपनी खाल ।।

कुर्सी मिलते ही बदले रंग।
बदल गई है उनकी चाल।।

सत्ता का स्वाद चखने को ।
टपक रही है सबकी राल।।

मत पालो इन जोंको को ।
चूसेंगी खून ये पांच साल।।

बज रहा बिगुल बगावत का ।
देखो,अब जलने लगी मशाल ।।

गेहूं सड़ रहा बोरों में बंद ।
घर में पड़ रहा है अकाल।।

क्यों भर रहे इतनी दौलत ।
जब इक दिन आना है काल।।

एक शेर और

किसानोँ की जमीन और पानी का ।
गडकरी जी कर रहे हैँ इस्तेमाल ।।


डा. मनोज रस्तोगी
8 जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद-244001
उत्तर प्रदेश

Saturday 9 July 2011

प्रार्थना

मंदिरों में हो रही है
पूजा अर्चना
और
गिरजाघरों में
प्रार्थनाएं
मस्जिदों में
आसमान की ओर
उठ रहे हैं-सैकड़ो
हाथ
अल्लाह-’मेघ दे,पानी दे’
वह
बैठा चुपचाप
ताक रहा है
अपने घर की छत
और
कर रहा है
मन ही मन प्रार्थना
हे !इंद्र देव
अभी, कुछ दिन और
बनायें रखना
मेरे ऊपर कृपा !

डॉ.मनोज रस्तोगी
मुरादाबाद(उ.प्र.)

Saturday 7 May 2011

सड़क,बंधुआ मजदूर और भगवान

अक्सर
रात को
मैँ शहर मेँ घूमता हूँ
काली, पसरी और
गढ्रढेदार सड़क
देखकर
मुझे अहसास होता है
किसी बंधुआ मजदूर का
जो दिनभर की थकन
उतारने के लिए
पसर गया हो
और
मालिक की तरह
भौंकते हुए कुत्ते
उसकी नीँद मेँ
खलल डाल रहे होँ
सड़क के दोनोँ ओर
फुटपाथ पर
बच्चोँ को सोया देख
मुझे याद आता है
बच्चे भगवान होते हैँ
मैँ सोचता हूं
भगवान का स्थान
क्या फुटपाथ पर होता है

Saturday 30 April 2011

भेड़ियों के सम्मुख

रेल की पटरियों सा
हो गया जीवन
कुछ पाने के लिए
हम भटकते रहे
अर्थ लाभ के लिए
बर्फ से गलते रहे
सुख की कामना में
जर्जर हो गया तन
स्वाभिमान भी रख
गिरवीं नागोँ के हाथ
भेड़ियों के सम्मुख
टिका दिया माथ
इस तरह होता रहा
अपना रोज चीरहरन
रेल की पटरियों सा
हो गया जीवन

Saturday 16 April 2011

तमाशा जन्मदिन का

लोग आये
उन्होंने
मोमबत्तियां बुझाईं
केक काटा
तालियां बजाईँ
और
नारे उछाले
“हैप्पी बर्थ डे टू यू ”
फिर उन्होंने
बच्चे को देखा
उसके मम्मी -डैडी को देखा
एक अर्थभरी
मुस्कान फैंकी
और
बच्चे के हाथ में
पकड़ा दिया एक
वज़नी लिफाफा
और बढ़ते गये
खाने की टेबिल की ओर
देर रात तक
यह सिलसिला
चलता रहा
और बच्चा
टुकुर टुकुर देखता रहा
मम्मी डैडी को
लिफाफों को
और लोगों की
मुस्कान को
देखते देखते
यह तमाशा
अपने जन्मदिन का
जब थक गया बच्चा
तब, सबकी नजर बचा
एक बूढ़ी नौकरानी आई
उसने
सिर्फ उसके सिर पर
प्यार भरा हाथ फेरा
और
मुस्कराई
अब बच्चा
टुकुर टुकुर नहीं देख रहा था
खिलखिला रहा था

## डा. मनोज रस्तोगी
 मुरादाबाद (उ.प्र.)

Friday 15 April 2011

अन्ना हजारे के नाम

पीसीओ के लिए आवेदन पत्र
आमंत्रित हैँ
की जानकारी होते ही
हम भी पहुँच गये
टेलीफोन के दफ्तर
फार्म लेने के लिए
लगी लंबी लाइन देखकर
आने लगे सिर में चक्कर
थोड़ी देर बाद एक कर्मचारी
ने बड़ी शालीनता से पूछा
क्या मैं आपकी सहायता
कर सकता हूं
बीस रुपये का फार्म
मात्र सौ रुपये में अभी
दिला सकता हूँ
मैंने सोचा
सौदा कोई बुरा नहीँ है
लाइन में घंटोँ खड़ा
होने से बच जाउंगा
घर जाकर
चादर तानकर सो जाउंगा
फार्म जमा करने के
कुछ दिन बाद
मैँने फिर लगाया
दफ्तर का चक्कर तो
संबंधित अधिकारी ने
कहा बड़ी गंभीरता से
भाई साहब
यदि आपको
वास्तव में पीसीओ चाहिए
तो दिल्ली जाकर मंत्री जी से
अपने चरित्र का
प्रमाण पत्र ले आइए
अगर आप ऐसा नहीँ कर सकते
तो भी कोई बात नहीँ
आपका काम हो जायेगा
बस डिमांड नोट की राशि मेँ
एक शून्य बढ़ जायेगा
मैँने कहा
यह तो खुलेआम भ्रष्टाचार है
वह आध्यात्मिक मुद्रा मेँ बोले
भाई साहब
इसका तो हर कोई शिकार है
इसके खिलाफ आप कहाँ जायेँगे
जहां जायेँगे इसे पायेँगे
लगता है आप
अखबार नहीं पढ़ते
अन्यथा यह बात नहीं कहते
इस आरोप से तो
मंत्री जी भी नहीं बच सके
तो हम कैसे बच पायेँगे
कुछ दिन तक तो जरूर
आप बौखलायेँगे
फिर लौटकर हमारी ही
शरण मेँ आयेँगे

### डा. मनोज रस्तोगी
मुरादाबाद